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नज़्म
अभी तो कितने ना-शुनीदा नग़्मा-ए-हयात हैं
अभी निहाँ दिलों से कितने राज़-ए-काएनात हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
तेरी हर जुम्बिश में है राज़-ए-निज़ाम-ए-काएनात
तेरी हर काविश से पाता है नुमू रंग-ए-हयात
मयकश अकबराबादी
नज़्म
तेरी नज़र में है तमाम राज़-ए-हयात क़ौम का
तेरे नफ़स से मुर्तइश राज़-ए-हयात क़ौम का
जौहर निज़ामी
नज़्म
सिर्फ़ उसी की तर्जुमानी है तिरे अशआ'र में
जिस सुकूत-ए-राज़-ए-रंगीं को कहें जान-ए-हयात
नाज़िश प्रतापगढ़ी
नज़्म
हाँ मगर पिन्हाँ है इन अश्कों में इक राज़-ए-हयात
दे रहा है क़ुर्ब के पौदों को तू अपने सबात
साक़िब कानपुरी
नज़्म
जिस के हर असरार में पिन्हाँ है इक राज़-ए-हयात
दौर-ए-आज़ादी की जिस में हैं हज़ारों कैफ़ियात
टीका राम सुख़न
नज़्म
हयात-ए-नौ इसी नौ के अदद का राज़-ए-सर-बस्ता
ये नौ दिन और नौ रातों का इक रंगीं ड्रामा है